
आबलापा कोई इस दस्त में आया होगा
वरना आंधी में दिया किस ने जलाया होगा
ज़र्रे ज़र्रे पे जड़े होंगे कुंवारे सजदे
एक एक बुत को खुदा उस ने बनाया होगा
प्यास जलाते हुए काँटों की बुझाई होगी
रिसते पानी को हाथेली पे सजाया होगा
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा
खून के छींटे कहीं पोछ न लें रेह्रों से
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा
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