Wednesday, February 25, 2009
puuchhate ho to suno kaise basar hotii hai
पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की i सदके की सहर होती है
सांस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है न अब आस्तीन तर होती है
जैसे जागी हुई आँखों में चुभे कांच के ख्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है
गम ही दुश्मन है मेरा गम ही को दिल धून्धता है
एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है
एक मरकज़ की तलाश एक भटकती खुश्बू
कभी मंजिल कभी तम्हीद -अ-सफ़र होती हा i
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